Sunday, November 20, 2011

दैत्य जाग उठा है

आधुनिक युग के आगाज के साथ-साथ योरोप में वर्चश्व की लड़ाई अपने चरम पर थी. लेकिन चीन उस समय सो रहा था. नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था: "वहां एक दैत्य सो रहा है उसे मत जगाओ, क्योकि जिस दिन वह जागेगा पूरी दुनिया को हिला देगा" आज वह दैत्य जाग उठा है. पिछले हजारों साल से सो रहा दैत्य न शिर्फ़ अब जग गया है बल्कि अपनी हुंकार से पूरी दुनिया में दहशत फैलाने की कुचेष्टा कर रहा है. यूँ तो गत पांच-छः दशकों से चीन भारत की सीमा में घुसपैठ करता रहा है. और बड़े ही दुस्साहस के साथ पूरे अरुणांचल पर अपना दावा ठोकता है. लेकिन ये बाते अब छोटी हो चुकी हैं. अब वह एशिया पर वर्चश्व की बात करने लगा है. आशियान सम्मेलन२०११ के दौरान चीन ने यह बात कहकर अमेरिका की नीद हराम कर दी है की, आने वाला युग एशिया के वर्चश्व का युग है. व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के इस युग में भारत भी चीन के साथ अपने व्यापार बढाने में रूचि ले रहा है बजाय इसके की सीमा पर जो गतिरोध है वे अलग मुद्दे हैं उन्हें विकास के आड़े नहीं आने दिया जाएगा. यही स्थिति कमोबेश अमेरिका की भी है भारत और चीन दोनों अमेरिका के बड़े व्यापारिक साझेदार हैं लेकिन चीन की बेतहाशा बढ़ती सामरिक शक्ति ने भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका को भी चिंतित कर दिया है. यह एक गंभीर मुद्दा है. शीत युद्ध के अवसान के बाद यह पहला मौक़ा है जब अमेरिका को खुली चुनौती मिल रही है. ऐसे अनेक अवसर आए है जब चीन अमेरिका को ललकारता हुआ दिखाई दिया. बात पाकिस्तान में चीनी सैनिको की समानांतर मौजूदगी की हो या फिर भारत व अमेरिका के खिलाफ साईबर  जासूसी की. या फिर बढ़ती हुई सामरिक शक्ति की ,ऐसी शक्ति जो अमेरिका को टक्कर देने में काबिल है. समुद्र में चीनी दखल लगातार बढ़ा है. यह भारत के लिए चिंता का विषय है ही, लेकिन अमेरिका भी इसे रोकने में नाकाम ही रहा है. हलाकि आसियान सम्मलेन के दौरान चीन सागर पर चीनी दावे को मनमोहन सिंह ने यह कहकर टाल दिया की यह यह मशला अंतररास्ट्रीय क़ानून के दायरे में आता है. लेकिन इस बात को ओबामा भी हजम नहीं कर पा रहे है के चीन ने बर्मा में अपना जो सैन्य अड्डा बना लिया है साथ ही दक्षिणी चीन सागर में जिस प्रकार से उसकी ताकत बढ़ रही है; उसका जबाब ओबामा डियागो गार्सिया से देंगे या फिर १९६२ की तर्ज पर अपना बड़ा भेजेंगे. संभवतः दोनों ही नामुमकिन है इस पर से पर्दा पकिस्तान और अफगान पर अगले अमेरिकी कदम के बाद ही उठा सकता है या कोई कयास लगाया जा सकता है. बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर है की चीन अपने पाक दोस्त को लेकर के रुख दिखाता है. या फिर मनमोहन की तरह मौन की नीति का अनुसरण.

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